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Tuesday, 17 June 2014

Fwd: बदलता भारत



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From:           बदलता भारत{INDIA CHANGES} <noreply@blogger.com>
Date: 31 May 2014 6:20:15 pm IST
To: horirajkumar@gmail.com
Subject: बदलता भारत

बदलता भारत{INDIA CHANGES}

बदलता भारत


बौद्धिक प्रकोष्ठ

Posted: 31 May 2014 03:56 AM PDT

बौद्धिक प्रकोष्ठ
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भूमिका
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देश में बहुसंख्यक वर्ग कैसे पिछड़ा वर्ग और दलित की श्रेणी में आ गया ?? क्या उत्तर है ? या हम पूछें कि देश की इतनी भारी जनसंख्या लगभग 80% से 90% तक दौड़ में पिछड़ कैसे गयी और स्वतन्त्रता के इतने वर्षों बाद भी पिछड़ी और दलित है ??!! इनके अनेक उत्तर आप देते चले आये हैं और देते रहेंगे । समग्र उत्तरों में 99% केवल इसके लिये अगड़ों को उत्तरदायी मानने के होंगे और पिछड़ोंतथा दलितों द्वारा पानी पी पी कर अगड़ों को कोसने से सम्बन्धित होंगे । मैं नहीं कहता कि दोषी और उत्तरदायी लोगों को बेनकाब न किया जाय । करिये अवश्य करिये । ग़लत नीतियों का विरोध हमेशा होना ही चाहिये । समानता की माँग आवश्यक है ।
आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में दो वर्ग सदा से रहे हैं ----एक --शोषक वर्ग और द्वितीय --शोषित वर्ग । प्रकृति का दस्तूर है कि शोषक सदा अपनी सत्ता को बढ़ता है और शोषित लगातार उसका विरोध करता है और ताजीवन छटपटाता है । इसके लिये शोषित हमेशा एक होने की बात करता है ,एकता के कार्यक्रम और आन्दोलन चलाता है । पर गंभीर चिन्तन की आवश्यकता है कि क्यों लगातार शोषित वर्गों को वह सफलता नहीं मिलती जिसकी उसे अपेक्षा रही है ? क्यों आज भी इन वर्गों की उन्नति के आँकड़े भयावह हैं ?? फिर हम ऊपर वालों को दोष देने बैठ जायेंगे और यही हम सदियों से करते आये हैं । कभी हम एकलव्य , कभी शम्बूक की कथायें सुनायेंगे । कभी सरदार पटेल जैसे अनेक नाम लेंगे जो अन्याय का शिकार हुये । हम मानते हैं यह सब सही है । इस देश में जातिप्रथा इतनी जबरदस्त है कि हर जाति अपने लिये जीती है और अपनों का समर्थन करती है । यह सत्य नहीं है कि ऐसा सिर्फ़ अगड़ी जातियाँ करती हैं बल्कि पिछड़े और दलित भी अवसर मिलने पर यही करते हैं ।
पिछड़ों और दलितों के इतने संगठन हैं कि आप गिन नहीं पायेंगे । आखिर उनको समुचित परिणाम क्यों नहीं मिलता ?? आइये इसको समझने के लिये हम एक उदाहरण लें ----एक व्यक्ति है उसे टीबी (तपेदिक) है । पहले तो बीमारी का निदान आवश्यक है diagnosis होना चाहिये । इन समाजों में अनेक डा. ऐसे हैं जिन्हें बीमारी का पता ही नहीं और तुर्रा यह कि वे समाज के बहुत बड़े डाक्टर हैं । बीमारी कुछ और इलाज कुछ । बीमारी ठीक कैसे होगी ? दूसरी संख्या उन लोंगो की है जो बीमारी तो जान गये हैं पर बजाय समुचित इलाज करने के बीमारी के लिये दूसरों को दोष देते हैं, बतायेंगे किन किन के कारण बीमारी हुई ? दूसरों का कितना दोष है ? बैक्टीरिया का कितना दोष है ? किस्सा यह कि उनका समय इन्हीं विरोधों और चिन्ताओं में चला जाता है --बीमार और बीमार होता जाता है । मरीज़ को समय से जो दवाइयाँ मिलनी चाहिये वे नहीं मिल पातीं और वह लगातार मरणासन्न होता जाता है ।
मेरा मानना है कि मरीज़ का समुचित इलाज होना चाहिये जो कारगर भी हो । टीबी की समयबद्ध दवायें चलें और मरीज़ का पोषण किया जाय , उसे पौष्टिक भोजन दिया जाय तो निश्चित ही वह एक दिन चंगा हो जायेगा ।आइये हम मर्ज को पहले पहचानें फिर उसका इलाज करंे । टीबी है तो टीबी का इलाज , कैंसर है तो कैंसर का इलाज ।
आयें , विचारें हम पहले अपने को बीमार मानें । बीमारों को एकत्रित कर कभी सफलता नहीं मिलेगी चाहे आप बहुसंख्यक हों , हैं तो आप बीमार ही और वह भी सदियों से ।आप की बीमारी वास्तव में है क्या ?? सत्ता की भागीदारी के लिये पहले तो हृष्ट पुष्ट बनना पड़ेगा । आप से ही पूछता हूं -कमज़ोरों की सेना बनायी जाय भले ही वह भारी संख्या में हो फिर भी वह पराजित हो जायेगी और लगातार पराजित होती रहेगी । जैसा कि हम देखते रहे हैं ।हम पिछडे़ हैं यह बीमारी है , दलित हैं हैं - यह बीमारी है । यहाँ मैं एक बात और स्पष्ट कर दूं कि आर्थिक पिछड़ेपन से अधिक बौद्धिक , मानसिक पिछड़ापन है । आरक्षण का उपाय संविधान में किया गया पर उससे आंशिक सफलता ही मिली । शैक्षिक और बौद्धिक पिछड़ेपन के कारण आज भी पद खाली के खाली रह जाते हैं । हम कुछ हद तक शिक्षित होते हैं पर बौद्धिक नहीं होते , कुछ अपवाद छोड़ कर ।
मैं फिर कुछ प्रश्न करता हूं --इन वर्गों में कितने लेखक हैं ? कितने पत्रकार हैं? कितने कवि हैं? कितने कहानीकार ? कितने उपन्यासकार? कितने कलाकार ? कितने गायक? कितने धर्माचार्य ? या मैं दूसरी तरह से पूछूं कितने चाणक्य ? कितने वशिष्ठ ? कितने बुद्ध ? कितने दयानन्द ? कितने विवेकानन्द? या पूछूं मन्दिरों में आपके कितने पुजारी हैं? कितने शादी विवाह और अन्य धार्मिक कार्य कराने वाले?
क्या आपके परिवारों , आपके संगठनों ने इन क्षेत्रों में भागीदारी के कार्यक्रम चलाये ? चलाये तो कितने पत्रकार, लेखक , कवि आदि आदि पैदा किये? आप कहेंगे ये पैदा नहीं किये जाते , ये जन्मजात होते हैं । मान भी लें तो क्या आपने और आपके संगठनों ने वातावरण दिया कि जिससे इन क्षेत्रों में प्रतिभा निखरती ? होता यह आया है कि इन क्षेत्रों में आपके बीच कोई काम करता है तो उसे कभी सम्मान नहीं देंगे बढ़ावा देना तो दूर । आप बाल्मीकि का उत्तराधिकारी नहीं पैदा कर पाये । अम्बेडकर ने कहा शिक्षित बनो --हमने उनकी मूर्तियाँ लगा दीं और मस्त हो गये अपने में । पहले भी हम यह कर चुके हैं --बुद्ध की शिक्षा मानने के बजाय बना दी उनकी भी मूर्तियाँ जो मूर्ति पूजा के ही विरोधी थे ।
हम क्या करें?? व्यक्ति के रूप में आप अपने परिवार , सगे सम्बन्धियों में चिन्हित करें जिन्हें थोड़ी भी रुचि हो इन क्षेत्रों में । संगठनों के रूप में अपने अपने समाजों में चिन्हित करें उन लोगों को जो या तो रुचि रखते हों या कुछ काम कर रहे हों , फिर उन्हें बढ़ावा दें और उनको आर्थिक सहायता दें ताकि उनके कृतित्व का प्रकाशन हो सके ।
एक परिकल्पना दूँगा --आप की आबादी मान लें 100 करोड़ है तो अगर एक प्रतिशत यानी एक करोड़ लेखक , कवि हो जायें और वे एक साल में एक किताब भी अपने मनचाहे विषय पर लिखें तो हर वर्ष एक करोड़ किताबें !! और निश्चित वे आपके साथ न्याय करेंगी । पाँच वर्षों में पाँच करोड़ पुस्तकें तो देश में बौद्धिक क्रांति ले आयेंगी । इन में से कुछ लाख पत्रकार हों तो सम्भव है आपके साथ कोई अन्याय कर सके । कुछ लाख धर्माचार्य हों, कलाकार हों तो कौन सी क्रांति हो जायेगी कभी सोचा है ?
विश्व गवाह है ----बौद्धिक क्रान्तियों के बाद ही राजनैतिक क्रांतियां होती हैं । अगर ऐसा हुआ तो राजनैतिक भागीदारी को कौन रोक पायेगा ? फिर सत्ता तो आपके पास ही रहेगी बौद्धिक भी और राजनैतिक भी । लेकिन फिर स्मरण करा दूं बौद्धिक सत्ता चाभी है राजनैतिक सत्ता पाने के लिये । दूर क्यों जायें दक्षिण भारत में यह बहुत पहले हो चुका है -- रामास्वामी नायकरों और ज्योति फुलों द्वारा । अम्बेडकर भी बाद में राजनैतिक थे पहले थे लेखक , विचारक 14 पुस्तकों के लेखक । तभी उनका लोहा गांधी , पटेल ,नेहरू सब मानते थे । वे इन्हीं गुणों और विशेषताओं के कारण संविधान की ड्राफ्ट कमेटी के अध्यक्ष बनाये गये । उनकी योग्यता को राष्ट्र ने नमन किया । आइये हम कुछ कार्यक्रम चलायें और एक क्रांति के संवाहक बनें ।
मुख्य कार्यक्रम --------
१--संगठनों में विभिन्न बौद्धिक और कला के क्षेत्रों में कार्य करने वालों या रुचि रखने वालों को चिन्हित करें ।प्रथक प्रथक नाम पतों के साथ अभिलेख बनायें ।
२-- सम्मेलनों और कार्यक्रमों में उन्हें सम्मानित करें ।
३-- उनकी कला के विकास के लिये और उनकी रचित पुस्तकों के प्रकाशन के लिये उन्हे आर्थिक सहयोग दें --समाज के धनी व्यक्ति आगे आयें ।
४-- लगातार --साप्ताहिक , मासिक समीक्षा करें कि इन क्षेत्रों में कितनी प्रगति हुई ।
५-- पत्र पत्रिकाओं की संख्या बढ़ायें और उन्हे लेखकीय , आर्थिक सहयोग दें ।
६-- रचनाकारों को पुस्तकें लिखने के लक्ष्य दें और उनके प्रकाशन की व्यवस्था करायें ।
७--रचनाकारों के प्रथक से भी संगठन बनायें और उनके सम्मेलन करें ।
राज कुमार सचान "होरी"- अध्यक्ष - बौद्धिक प्रकोष्ठ
राष्ट्रीय अध्यक्ष -बदलता भारत
www.badaltabharat.com , horibadaltabharat.blogspot.com , Facebook.com/Rajkumarsachanhori
Email rajkumarsachanhori@gmail.com , horirajkumarsachan@gmail.com


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Fwd: Raj Kumar Sachan Hori BJP leader and Rashtriya Adhyaksha BADALTA BHARAT with Anupriya Patel MP Mirzapur and General Secretary Apnadal .

Posted: 30 May 2014 10:34 PM PDT



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From: Raj Kumar Sachan HORI <rajkumarsachanhori@gmail.com>
Date: Wednesday, May 28, 2014
Subject: PH
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Thursday, 5 June 2014

बदलता भारत

बदलता भारत
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
{साईं होरी ट्रस्ट (रजि.)द्वारा संचालित }
63, नीति खण्ड ।।। इंदिरापुरम ,ग़ाज़ियाबाद
प्रदेश कार्यालय (उ . प्र .) 11 बसन्त विहार ,मानस सिटी रोड ,इंदिरानगर ,लखनऊ ।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
पुस्तकालय , वाचनालय ,सभागार योजना
---------------------------------------
भूमिका
......
हमारा देश प्राचीनतम संस्कृति का देश है । विश्व में सर्वाधिक बोली,भाषायें संस्कृतियाँ इसी देश भारत में मिलती हैं । विकास की यात्रा में यह परम आवश्यक है कि हम अपनी पहचान , अपना इतिहास सुरक्षित रखें । किसी ने ठीक ही कहा है --------
'यूनान मिश्र रोमां सब मिट गये जहाँ से ,
कुछ हस्ती है हमारी , मिटती नहीं जहाँ से ।'
प्राचीन भारत में भी नालंदा ,तक्षशिला जैसे शिक्षा केन्द्र अपने विश्व प्रसिद्ध पुस्तकालयों के लिये जाने जाते थे जहाँ विदेशी भारी संख्या में विद्याध्ययन के लिये आते थे । हमारा देश विश्व गुरू था ।दुनियाँ में सर्वाधिक पुस्तकें हम प्रकाशित करते थे ,परन्तु कालान्तर में विदेशी आक्रमणों से स्थितियां निरन्तर खराब होती गईं और आज हम पिछड़ गये ।
आइये हम संस्कृति और इतिहास के संरक्षण के लिये देश में प्रभावी अभियान चलायें ।" बदलता भारत " ने आरम्भ की है -----
" पुस्तकालय , वाचनालय ,सभागार योजना"
इस योजना से देश की संस्कृति ,इतिहास के संरक्षण के साथ साथ शिक्षा और ज्ञान के प्रसार तथा विकास और रोजगार में आशातीत लाभ होगा ।
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योजना क्या है ?
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देश के प्रत्येक जनपद में कम से कम एक नगरपालिका ,नगरनिगम में उस जनपद के सबसे बड़े साहित्यकार या स्वतंत्रता सेनानी के नाम से एक "पुस्तकालय ,वाचनालय,सभागार "का निर्माण स्थानीय निकाय स्वयं अपने संसाधनों , प्रदेश और केन्द्र से प्राप्त धनराशियों तथा सांसद और विधायक निधियों से पूर्ण कराये जिसमें तीन कक्ष हों ---( 1) पुस्तकालय (2) वाचनालय (3) सभागार ।
पुस्तकालय में साहित्य ,विज्ञान ,अर्थशास्त्र , इतिहास, समाजशास्त्र ,धर्म ,दर्शन ,राजनीतिशास्त्र ,भूगोल आदि आदि के साथ इंजीनियरिंग तथा तकनीकी विषयों और मेडिकल व कम्पटीशन की पुस्तकें , पत्र ,पत्रिकायें भी उपलब्ध रहें जिससे क्षेत्रीय विद्यार्थीगण लाभ उठा सकें ।कोचिंग के स्थान पर प्रतिभावान विद्यार्थी स्वयं अध्ययन करते हैं बसर्ते उन्हें पुस्तकें उपलब्ध हों ।
पुस्तकालय के साथ एक कक्ष वाचनालय हो जिसमें बैठ कर विद्यार्थीगण और नागरिक पुस्तकें और पत्र,पत्रिकायें पढ़ सकें । इन्हीं दो कक्षों के साथ एक बड़ा सभागार होना चाहिये जिसका बहुद्देशीय प्रयोग किया जा सके । सभागार नगर की सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र बन सके इस लिये यह कम से कम 100 फ़ीट लम्बा और 60 फ़ीट चौड़ा हो । इस सभागार में क्षेत्र के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ,साहित्यकारों तथा अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों के चित्र संक्षिप्त विवरण के साथ लगाये जांय ।
"पुस्तकालय,वाचनालय ,सभागार " जहाँ एक ओर समस्त सांस्कृतिक , साहित्यिक ,बौद्धिक ,वैचारिक गतिविधियों का केन्द्र बनें वहीं दूसरी ओर वह बनें क्षेत्र के समस्त इतिहास को समेटे एक धरोहर । एक ऐतिहासिक धरोहर ।
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अभियान
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"बदलता भारत "का यह शैक्षिक, साहित्यिक और ऐतिहासिक अभियान इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष राज कुमार सचान होरी द्वारा अपने गृह नगर घाटमपुर जनपद कानपुर नगर में अपने साथी कवियों , शायरों, बुद्धिजीवी मित्रों और क्षेत्रीय नागरिकों के साथ 26 जनवरी 2014. से आरम्भ किया गया है ।
घाटमपुर क्षेत्र के गाँव टिकवांपुर में जन्मे महाकवि भूषण ने क्षत्रपति शिवा जी और महाराजा क्षत्रशाल पर वीर रस में कवितायें कीं और वह राष्ट्र कवि के रूप में जाने गये । देश में ,महाकवि भूषण नें घाटमपुर का नाम रोशन किया था ।
नगर पालिका द्वारा अपेक्षित कार्यवाही न किये जाने के कारण बदलता भारत संगठन द्वारा घाटमपुर तहसील के प्रांगण में 28 मई 14 को एक दिवसीय धरने का आयोजन किया गया जिसमें दूर दूर के जनपदों से प्रसिद्ध कवि ,शायर आकर धरने पर दिन भर बैठे । जिसमें बीच बीच में काव्य पाठ और भाषण चलते रहे ।
धरने की नोटिस और घोषणा का इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि प्रस्तावित धरने के दो दिन पूर्व ही नगर पालिका द्वारा बोर्ड की बैठक 26 मई 14 में राज कुमार सचान "होरी"द्वारा प्रस्तुत माँग को मानते हुये "महाकवि भूषण पुस्तकालय,वाचनालय ,सभागार "के निर्माण का प्रस्ताव पारित कर दिया गया और 27 मई को इस आशय का समाचार भी प्रकािशत हुआ ।
साहित्यकारों का प्रभाव समाज और देश ने महसूस किया । 28 मई का पूर्व प्रस्तावित धरना तो किया गया परन्तु नगरपालिका को धन्यवाद देते हुये और यह चेतावनी देते हुये कि समयबद्ध ढंग से कार्य पूर्ण कराया जाय , धरना सायं 5 बजे समाप्त किया गया ।कन्नौज ,रायबरेली , मैनपुरी से आये कवियों , शायरों ने अपने जनपदों में इसी तरह की माँग के लिये अपने यहाँ पर धरने आयोजितकरने के प्रस्ताव रखे ,जिनको पारित किया गया ।
सम्पूर्ण देश में इस तरह का अभियान " बदलता भारत " द्वारा चलाये जाने का निर्णय लिया गया ।
राज कुमार सचान "होरी"
वरिष्ठ साहित्यकार
राष्ट्रीय अध्यक्ष - बदलता भारत
email indiachanges2012@gmail.com, horibadaltabharat.blogspot.com , rajkumarsachanhori@ Facebook.com , horionline.blogspot.com






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Friday, 28 March 2014

Raj Kumar Sachan Hori

भाजपा मुख्यालय उ.प्र. में प्रभारी के साथ राजकुमार सचान "होरी" दिनांक २७ मार्च ।

Sunday, 23 March 2014

मैं भी झेलूं , तू भी झेल

मैं भी झेलूं , तू भी झेल
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१--लूले अन्धे सत्ताकामी , मैं भी झेलूं ,तू भी झेल ।
प्रजातन्त्र के ये आसामी, मैं भी झेलूं तू भी झेल ।।
२--जब शासन में दु:शासन ,गान्धारी आँखों में पट्टी,
तब तब शकुनी कौड़ी कानी, मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
३--गान्धी गान्धी मुख से बोलें सत्य अहिंसा खाकर,
बापू के सुन्दर अनुगामी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
४-- जब सत्ता वेश्या बना दी गई होगा क्या ,
सत्ता की औलाद हरामी , मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
५--कहता था मत विष घोलो यूँ हृदयों में ,
अब खून बह रहा जैसे पानी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
६-- कश्मीर जलेगा , राष्ट्र जलेगा इसी तरह ,
भ्राता हो जब पाकिस्तानी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
७--तन मन तार तार होता है होरी का फिर "होरी"
गोदानों की यही कहानी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।
८-- खण्ड राष्ट्र फिर खण्डित होने का भय "होरी"
दिल्ली जब जब बनी जनानी ,मैं भी झेलूं तू भी झेल ।

राज कुमार सचान "होरी"
www.badaltabharat.com ,horionline.blogspot.com
Email- rajkumarsachanhori@gmail.com


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Monday, 17 March 2014

चुनाव में किसान /एक भावी आन्दोलन

चुनाव में किसान /एक भावी आन्दोलन
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पूरे देश में चुनाव का माहौल है , देश की सरकार जो बननी है । सबसे ज्यादा मतदाता किसान हैं लगभग 70% परन्तु हर बार उनका वोट तो लिया जाता है पर उनकी फसलों का वाजिब मूल्य नहीं दिया जाता । लागत मूल्य फसलों का बढ़ते रहने से किसान को आमदनी न के बराबर होती है , खर्च चलाना दूभर । किसान पूरे देश में आत्म हत्या करते हैं जो मात्र एक ख़बर भी नहीं बन पाती है । मैं स्वयं किसान हूँ और उत्तर प्रदेश प्रशासन में 34 वर्षों की सेवा भी की है साथ ही पूरे देश में किसानों के मध्य गया हूँ , अच्छी तरह जानता हूँ कि किसानों को गेहूं, धान आदि पारम्परिक खेती बन्द करनी पड़ेगी अपने स्वयं और परिवार को बचाने के लिये । वानिकी , औद्यानिक और मछली पालन जैसे क्षेत्रों में जाना होगा भले ही देश में खाद्यान का उत्पादन अत्यन्त कम हो जाय । अगली सरकार क्या फसलों के मूल्य वास्तविक लागत से अधिक निश्चित करेगी ??? अभी से किसानों और किसान संगठनों को विभिन्न दलों से आश्वासन लेना होगा ।
मैं लगातार किसानों से अपील करता रहा हूँ कि वे अपनी कृषि भूमि का कम से कम 20% बेच कर अपने गाँव के पास के कस्बे में उससे एक प्लाट ले लें जो कुछ ही वर्षों में उसको बहुत बड़ी कीमत देगा जो उसकी कुल भूमि की कीमत से भी अधिक होगी । गाँव में रहने के बजाय पास के कस्बे में रह कर अपनी खेती भी देखे और बच्चों को शहर में पढ़ाये , लिखाये । शहर में उसे खेती के अलावा भी कोई धन्धा अवश्य मिल जायेगा जो उसकी ग़रीबी और भुखमरी दूर करेगा ।
इसके लिये यथाशीघ्र मेरे द्वारा एक राष्ट्र व्यापी आन्दोलन आरम्भ किया जायेगा , जिसकी कार्य योजना तैयार की जा रही है ।आप स्वयं किसान हैं या किसान परिवार से हैं तो आपका सक्रिय सहयोग चाहिये ।
आपका साथी---
राज कुमार सचान "होरी"
www.badaltabharat.com , horibadaltabharat.blogspot.com ,
Facebook.com/RajKumarSachanHori
horirajkumarsachan@gmail.com


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Monday, 10 March 2014

डा. भीमराव अम्बेडकर के कुछ सम्बोधन ़़़़़

डा. भीमराव अम्बेडकर के कुछ सम्बोधन ़़़़़
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राज कुमार सचान 'होरी'
"बाबा साहब चरित मानस " के रचनाकार, प्रसिद्ध कवि, एवं लेखक
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स्वजनों को सम्बोधित करते हुये ़़़़़़़
"तुम्हारे ये दीन दुबले चेहरे देख कर और करुणा जनक वाणी सुन कर मेरा हृदय फटता है । अनेक युगों से तुम गुलामी की गर्त में बैठ रहे हो ,गल रहे हो ,सड़ रहे हो ; फिर भी तुम्हारी भावना यही है कि तुम्हारी यह गति देव निर्मित है ---ईश्वर के संकेत के अनुसार है । तुम गर्भ में ही क्यों नहीं मरे ? जन्म लेकर तुम जगत में दुख , दरिद्रता और दासता के विकराल चित्र का वीभत्स रूप अपने अवनत और अपमानित जीवन से बढ़ा रहे हो । अगर तुम्हारे जीवन का पुनुरुज्जीवन नहीं हो सकता तो तुम स्वयं मिट कर इस जगत के दुख का बोझ कम क्यों नहीं करते ? तुम मनुष्य जैसे मनुष्य हो ।खुद के कर्तृत्व से जगत में उन्नति करने का अधिकार सबको है । तुम इस देश के निवासी हो ।अन्य भारतीयों के समान अन्न , वस्त्र , आस्रयमिलना तुम्हारा अपना जन्म सिद्ध अधिकार है ।"
कुलाबा ज़िला बहिस्कृत परिषद में ़़़़़़़़़
" नार्मल स्कूल में शिक्षा लेकर लश्कर में हेड मास्टर , सूबेदार , जमादार बन कर बुद्धिमत्ता , तेज , शौर्य दिखाने का मौका उस समाज को मिलता था । मराठे नीचे झुक कर सलाम करते थे । कम्पनी सरकार द्वारा शुरू की गई लश्कर की सख्ती की शिक्षा के कारण उनकी ज्यादा प्रगति हुई थी । जिस अस्प्रश्य समाज की सहायता के बिना ब्रिटिश सरकार का इस देश में प्रवेश कभी न होता , उस अस्पृश्य समाज की भर्ती करना ब्रिटिश सरकार ने आगे बन्द कर दिा , इस लिये यह अनर्थ उनके साथ हुआ है ।" "नेपोलियन ने जिस इंग्लैंड देश को 'काटो तो खून नहीं ' कर दिया ; उस देश ने मराठाशाही को विनष्ट किया ;इसका कारण मराठों के जाति भेद का मनमुटाव और आपसी भेदभाव न हो कर ब्रिटिशों द्वारा इस देशवासियों की सेना खड़ी करना,
है । लेकिन वह सेना थी अस्पृश्य जाति की । अगर अंग्रेजों को अस्पृश्यों का बल प्राप्त न होता ,तो यह देश वे कभी भी काबिज नहीं कर सकते थे " आगे कहा --"हम सरकार के हमेशा अनुकूल होते हैं , इसीलिये तो सरकार हमारी हमेशा उपेक्षा करती है । सरकार जो दे उसे लेना , जो कहे वही सुनना सुनना जिस स्थिति में रहने के लिये बतायेगी उस स्थिति में रहना ---हमारी दास्य वृत्ति बन गयी है ।लश्कर भर्ती पर बन्दी उठाने का भरसक प्रयास करो ।" ....." सरकार एक जबर्दस्त महत्वपूर्ण संस्था है । सरकार के मन में जो होगा , उसके उनुरूप सब कुछ घटित होगा , लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि सरकार कौन सी बातें कर सकेगी ;यह पूरी तरह से सरकारी नौंकरों पर निर्भर है । क्योंकि सरकार े मत का मतलब है सरकारी नौंकरों का मत ।हमें सरकारी नौकरियों में प्रवेश करना चाहिये ।"
गोलमेज परिषद में ़़़़़़़़
"जिन लोगों की स्थिति गुलामों से भी बुरी है और जिनकी जनसंख्या फ्रांस की जनसंख्या जितनी है ,ऐसे भारत के 1/5 लोगों की शिकायतें मैं परिषद के सम्मुख रख रहा हूं । न दलितों की माँग यह है कि भारत सरकार लोगों द्वारा , लोगों के द्वारा चलाया गया , लोगों का राज्य हो । ब्रिटिश राज्य आने से पहले हमारी जो करुणाजनक स्थिति थी , उसमें तनिक भी फ़र्क नहीं पड़ा है । हम केवल मौके की प्रतीक्षा कर रहे हैं । ब्रिटिश राज्यसत्ता से पहले हमें देहातों में कुयें से पानी भरना मना था । क्या ब्रिटिश सरकार ने हमें यह न्याय दिलवाया ? पहले हमें मन्दिर प्रवेश मना था क्या ब्रिटिश सरकार ने दिलवाया ? पुलिस में प्रवेश नहीं था क्या ब्रिटिश सरकार ने दिलवाया ? .....इन सभी प्रश्नों के उत्तर हम नकारात्मक देते हैं । .".....
गांधी अम्बेडकर की प्रथम भेंटमें वार्तालाप से .....
" आप कहते हैं कि आपके पास मातृ भूमि है , लेकिन मैं फिर बताता हूं कि मेरे पास मातृभूमि नहीं है । जिस देश में कुत्ता जिस तरह की ज़िन्दगी जीता है , उस तरह की ज़िन्दगी भी हम नहीं गुज़ार सकते ; कुत्ते बिल्लियों को जितनी सुविधायें प्राप्त होती हैं , उतनी सुविधायें भी हमें हर्ष के साथ जिस देश में नहीं मिलती हैं, उस भूमि को मेरी जन्म भूमि और उस भूमि के धर्म को मेरा धर्म कहने के लिये मैं ही क्या , परन्तु जिसे इन्शानियत का ज्ञान हुआ है औरजिसे स्वाभिमान की परवाहहै --- ऐसा कोई भी अस्पृश्य तैयार नहीं होगा ।इस देश ने हमारे बारे में इतना अक्षम्य अपराध किया है कि हमने उसका कैसा भी और कोई भी भयंकर द्रोणी किया हो , तो भी उससे होने वाले पाप की जिम्मेदारी हमारे शिर नहीं पड़ेगी । ऐसा होने के कारण मुझे अराष्ट्रीय कह कर कोई कितनी भी गालियाँ दे , तो भी उसके बारे में विषाद मान लेने का मेरा कोई प्रयोजन नहीं है क्योंकि मेरे तथाकथित अराष्ट्रीयत्व की जिम्मेदारी मुझ पर न हो कर मुझे अराष्ट्रीय कहने वाले लोगों पर , उस राष्ट्र पर है । मेरे पाप के भागी वे हैं , मैं नहीं । "
मन्दिर प्रवेश के मुद्दे पर ......
" स्पृश्य हिन्दुओं से मेरा कहना है कि आप मन्दिर खोलें या न खोलें , इस पर सोच विचार आप करें । मैं उसके लिये आंदोलन नहीं करूंगा । मनुष्य के पवित्र व्यक्तित्व के प्रति सम्मान रखना आपको सभ्यता का लक्षण लगता है तो आप मन्दिर खोलें और सज्जन जैसा बर्ताव करें । सज्जन बनने की अपेक्षा अगर आपको हिन्दू जन के रूप में शेखी बघारना हो ,तो मन्दिर के द्वार बन्द करो और आत्मनाश करो ।........ जो धर्म असमानता का समर्थन करता है ,उसका विरोध करने का उन्होने निश्चय किया है । अगर हिन्दू धर्म को सामाजिक समता का धर्म बनना है तो उसके क़ानून में अस्पृश्यों को मन्दिरप्रवेश देने तक ही सुधार करना काफ़ी नहीं होगा । उसके लिये चातुर्वर्ण्य निर्मूलन कर उसकी शुद्धि करनी चाहिये ।समस्त असमानता का मूल चातुर्वर्ण्य है । चातुर्वर्ण्य अस्पृश्यता की जननी है क्योंकि जातिभेद और अस्पृश्यता असमानता के अन्य रूप हैं "
वीर सावरकर द्वारा अम्बेडकर को मन्दिर का उद्घाटन करने के निमंत्रण पर ....
"मैं पूर्व नियोजित काम काज की वजह से नहीं आ सकता । लेकिन आप समाज सुधार के क्षेत्र में काम कर रहे हैं उसके बारे में अनुकूल अभिप्राय देने का मौका मैं ले रहा हूं ।अगर अस्पृश्य वर्ग को हिन्दू साजा अभिन्न अंग होना है तो केवल अस्पृश्यता निर्मूलन हो कर नहीं चलेगा । चातुर्वर्ण्य का निर्मूलन होना चाहिये । जिन थोड़े लोगों को इसकी आवश्यकता महसूस हुयी है , उनमें से एक आप हैं , यह कहते हुये मुझे हर्ष होता है ।"
फ़रवरी 1942 मुम्बई के वागले हाल में ' पाकिस्तान विषयक विचार' पर उद्बोधन
"उनके साथ वाद विवाद करने में कोई अर्थ नहीं , जिन्हें पाकिस्तान एक चर्चा का विषय नहीं लगता । अगर उन्हें पाकिस्तान का निर्माण अन्यायकारी लगा होगा तो भविष्यकालीन पाकिस्तान उन्हें एक अत्यंत भयंकर घटना महसूस होगी । यह कहना ग़लत है कि इतिहास को भूल जाओ । जो इतिहास को भूलते हैं , वे इतिहास निर्माण नहीं कर सकेंगे । यह बात अक्ल की है कि भारतीय फौज में से मुसलमानों का प्रतिनिधत्व कम कर के उस फौज को एकीसवीं औरएकनिष्ठ करना ज़रूरी है । अपनी मातृभूमि की सुरक्षा हम ज़रूर करेंगे ...... मैं यह स्वीकार करता हूं कि स्पृश्य हिन्दुओं के साथ कुछ मुद्दों पर मेरा झगड़ा है ,लेकिन आपके सामने मैं यह प्रतिज्ञा करता हूं कि अपने देश की स्वतंत्रता सुरक्षित रखने के लिये मैं अपने प्राण न्योछावर करूंगा ।"
डाक्टर अम्बेडकर के उक्त कुछ उद्बोधनों को उद्धृत करने का मेरा अभिप्राय यह है कि उन्हे उनके मूल में जाने और समझें । वैसे तो उनका जीवन इतनी बड़ी किताब है कि अगर उसके सारे पृष्ठ सम्पूर्ण धरती में फैलाये जायें तो पूरी पृथ्वी ढक जायेगी ।
राज कुमार सचान 'होरी'
176 अभय खण्ड (प्रथम) ,इंदिरापुरम , ग़ाज़ियाबाद
राष्ट्रीय अध्यक्ष -- बदलता भारत( INDIA CHANGES)
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Saturday, 8 March 2014

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Thursday, 27 February 2014

राम तेरे नाम

राम तेरे नाम
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
(१)
राम एक आराध्य थाम गतिमय होना ।
रोम रोम में राम बीज प्रतिपल बोना ।।
जीवन स्वर्णिम होगा रे मन धीरज रख ,
राम नाम जप ,मनवा ;प्रातः शाम ।।
००००००००००००००००००००००००००००००
(२)
आश और विश्वास स्वयं में राम सिखाता ।
अन्धकार में पथ प्रकाश का राम दिखाता ।।
चलता रह बस ,चलता रह रे मन अविचल,
निष्काम भाव मन करता रह तू काम ।। राम नाम जप----
००००००००००००००००००००००००००००००००
(३)
कितने आये गये नाम ले तेरा बस ।
अपना भी तो कुछ पल का है डेरा बस ।।
बस तुम जाना नाम अमर कर इस उस जग,
निश्चिंत भाव से जाना फिर उस धाम ।। राम नाम जप ----
००००००००००००००००००००००००००००००००००
(४)
आना जाना नाट्य मन्च के दृश्य मनोहर ।
अपने अपने पाठ पूर्ण कर जाते उस घर ।।
बिना मोह भ्रम रे मन ,जीवन यापन कर ,
"होरी" जाना कह कह कह हे राम !! राम नाम जप ---
००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
राज कुमार सचान "होरी"
कवि, साहित्यकार ,वक्ता
राष्ट्रीय संयोजक ----India changes( बदलता भारत )
email - rajkumarsachanhori@gmail.com , horiindiachanges@gmail.com , www.indiachanges.com ,http// horibadaltabharat.blogspot.com http//pateltimes.blogspot.com
राम नवमी के अवसर पर प्रकाशन हेतु प्रेषित ।
राज कुमार सचान "होरी"




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Sunday, 16 February 2014

PATEL TIMES(पटेल टाइम्स): DOHE MODI KE

PATEL TIMES(पटेल टाइम्स): DOHE MODI KE:                           दोहे मोदी के ---------------------------------------- 1--मोदी जैसा चाहिये , कुशल प्रशासक आज ।      जो पटेल...

DOHE MODI KE

                          दोहे मोदी के
----------------------------------------
1--मोदी जैसा चाहिये , कुशल प्रशासक आज ।
     जो पटेल सा बन करे , राष्ट्र जनों का काज ।।
2--लौह शक्ति सा हो अटल ,हो पटेल का दूत ।
     मोदी भारत भूमि का , सच्चा , सुदृढ़ सपूत ।।
3--आज राष्ट्र को चाहिये , एक कुशल सरदार ।
     जो सरदार पटेल का , निभा सके किरदार ।।
4--मोदी और पटेल की , बी  जे  पी की  राह ।
     कुशल प्रशासक चाहिये, आज देश की चाह ।।
5--सशक्त राष्ट्र के वास्ते , लौह पुरुष की राह ।
     मोदी जी अब सज रहे , अजी वाह भइ वाह ।।
                                    राज कुमार सचान "होरी"
                                    9958788699 , 07599155999