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Wednesday, 30 March 2016

अन्नदाता

अन्नदाता का सम्मान
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'अन्नदाता'  कह ,किसान का ,हम सम्मान  बढ़ाते हैं ।
जय किसान का नारा भी तो ,शास्त्री जी गढ़ जाते हैं ।।
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चलो एक किसान होरी संग ,एक कचेहरी साथ चलें ।
वही पुरानी  धोती कुर्ता ,चप्पल अब भी   साथ मिलें ।।
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उसके   खेतों मे दबंग ने ,क़ब्ज़ा   किया हुआ था ।
एसडीएम ,डीएम  से कहने ,होरी वहाँ  गया था।।
डोल रहा  था इधर  उधर , बाबू  अर्दलियों  तक ।
कोर्ट कचेहरी सड़कों तक,बंगलों से गलियों तक ।।
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छोटे से  बडके  नेता तक ,चप्पल  घिस  डाली थी ।
दान  दक्षिणा  देते  देते   ,जेब  हुई    ख़ाली   थी ।।
दौड़ लगाता   वह किसान ,अंदर से पूर्ण हिला  था ।
पर उसकी ख़ुद की ज़मीन का,क़ब्ज़ा नहीं मिला था ।।
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होरी का परिवार दुखी ,पीड़ित जर्जर ,तो था ही था ।
रोटी सँग बोटी नुचने का ,ग़म ही ग़म तो था ही था ।।
गया जहाँ था मिला वहीं,अपमान किसान सरीखा ।
उसको तो  हर  सख्स, ग़ैर सा ,मुँह  फैलाये दीखा ।।
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जय किसान कहने वाले सब ,उसकी  हँसी उड़ाते ।
नहीं मान सम्मान ,अँगूठा  मिल सब  उसे दिखाते ।।
क़र्ज़ भुखमरी  से पहले ही ,वह अधमरा  हुआ था ।
लेकिन  ज़्यादा अपमानों से ,अंतस्  पूर्ण मरा था ।।
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एक दिवस वह गया खेत में , लौटा नहीं कभी भी ।
होरी की यह कथा गाँव में ,कहते  सभी  अभी भी ।।
होरी किसान  की अंत कथा ,दूजा होरी  बतलाये ।
फिर से   आँधी तूफ़ानों सँग , काले  बादल छाये ।।
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          राज कुमार सचान होरी
       १७६ अभयखण्ड -१ इंदिरापुरम , गाजियाबाद
9958788699





Sunday, 27 March 2016

यूकीलिप्टस की खेती से लखपति बनें

यदि आप अपने खेतों के एक हेक्टेयर में यानी चार बीघे में ३@२ मीटर की दूरी पर यूकीलिप्टस लगाते हैं तो उसमें गन्ने की फ़सल के साथ ऐसा कर सकते हैं । पेड़ कुल लगेंगे १६६७ जो आठ साल से दस साल में प्रत्येक लगभग दो हज़ार रुपये का होगा । यानी कुल पेड़ों की क़ीमत होगी लगभग रुपये तेंतीस लाख । मान लिया जाय कि यह फ़सल १० सालों में तैयार होगी तो एक साल में औसत तीन लाख रुपये पड़ा । गन्ने की क़ीमत अलग ।लागत को घटाने के बाद भी शुद्ध आय लाखों में होगी ।
बन गये लखपति आप 
राजकुमार सचान होरी 
अध्यक्ष -- कृषक ग्रामीण श्रमिक मंच
सम्पादक - पटेल टाइम्स

Sunday, 13 March 2016

गेहूँ का समर्थन मूल्य

गेहूँ का समर्थन मूल्य
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भाजपा की केंद्र सरकार और प्रदेश सरकारो से "बदलता भारत "की ओर से किसानों के लिये माँग है कि इस वर्ष किसानों के लिये मददगार साबित हों और गेंहू की लागत में कम से कम 25% की वृद्धि करते हुये समर्थन मूल्य घोषित करें । फ़सलों में क्षति का मुद्दा अलग है उसके लिये बीमा है पर उत्पादन का तो सही मूल्य दें । किसान को केवल वोट बैंक न समझा जाय। जय किसान ।।
राजकुमार सचान होरी
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Tuesday, 1 March 2016

Future of India -- farmers & army

भारत का भविष्य 

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जय जवान ! जय किसान !!

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        अगर देश में एक भी किसान दुखी रहे और जवान को सुविधायें और देश का सम्मान मिलता रहे तो यह तय है कि यह देश दुबारा कभी ग़ुलाम होगा इतना सशक्त होगा कि विश्व शक्ति बनें

पर देश को कमजर्फ नेताओं और कमीनी राजनीति से बचाना होगा पूरा देश राष्ट्रवादी बन जायेगा अगर यह समझा जाय कि हिन्दू का विरोध और अपमान ही धर्मनिरपेक्षता है सही ,शरीफ़ मुसलमान या हिन्दू हमेशा देशप्रेमी होता है वहमिल कर रहना चाहता है पर कुछ सिरफिरे नेता हिन्दू मुस्लिम को लड़ा कर कुर्सी का गन्दा खेल खेलते हैं , तभी वे ही लोग किसानों और जवानों को हर सम्भव अपमानित करते हैं

किसानों और जवानों को शक्तिशाली बनायें राष्ट्र को संगठित और शक्तिशाली बनायें।

           जय जवान, जय किसान ,जय पटेल, जय सुभाष, जय हिन्द 

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राजकुमार सचान होरी 

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HORI KAHIN

           होरी कहिन 

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फूल और फल अब रहे,चहुँ दिशि में नक्काल

होरी   अपने   देश   में , बड़े   बड़े    भोकाल ।।

बड़े   बड़े  भोकाल , नक़ल  में  अकल  लगाते

दुनियाभर  का माल ,नक़ल  में  असल  बनाते ।।

कवि लेखक भी नक़ली,नक़ली नक़ली हैं स्कूल

सूँघ रहे हम जिन्हें चाव से , वे भी नक़ली फूल ।।

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पढ़ लिख कर डिग्री लिये , फिरते चारों ओर

पढ़े  लिखों  में  बढ़  रही , बेकारी   घनघोर ।।

बेकारी  घनघोर , डिग्रियाँ  भी कुछ   जाली

असली नक़ली खोखली कुछ तो चप्पे वाली ।।

स्किल   डेवलप   एक  रास्ता  , तू  आगे बढ़

स्किल   डेवलप  कोर्सों   को ही ,अब तू पढ़ ।।

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सत्तर प्रतिशत गाँव में ,अब भी देश सचान

कुछ भूखे नंगे मिलें , कुछ के निकले  प्रान ।।

कुछ के  निकले  प्रान , मगर   वे  हैं बेचारे

बस शहरों   की राजनीति के , मारे   सारे ।।

फ़सलों की लागत कम होती ,नहीं कभी भी।

अब  गाँवों  की दशा ,दुर्दशा  हाय   ग़रीबी ।।

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सभी अन्नदाता दुखी , तिल तिल मरे किसान

देश बढ़   रहा शान  से , कहते  मगर सचान ।।

कहते   मगर  सचान , देश में   ख़ुशहाली  है

यह किसान को सुन सुन कर , लगती गाली है।।

होरी  अब   भी गोदानों की , वही   कहानी  है

धनिया , गोबर वही , गाँव का वह ही पानी है ।।

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राज कुमार सचान होरी 

१७६ अभयखण्ड - इंदिरापुरम , गाजियाबाद 

horirajkumar@gmail.com

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Sunday, 28 February 2016

होरी कहिन - किसान पर

होरी कहिन
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१--
बस बलिदान जवान का, बस किसान का त्याग ।
दोऊ दुखिया देश में, खेलें पल पल आग ।।
खेलें पल पल आग , खेत सीमा पर दोऊ ।
इनकी सुधि भी लें न , कभी भारत में कोऊ ।।
करें आत्महत्या किसान तो , मरें जवान वहाँ ।
राष्ट्र इन्हीं के बलबूते पर , इनका दुखी जहाँ ।।
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राजकुमार सचान होरी
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किसान - अन्नदाता-२

किसान - अन्नदाता
(भाग -२)
भूमि से अन्न पैदा करना और उसे दानदाता की भाँति दूसरों को दे देना ,वाह रे अन्नदाता !! वाह रे धरती के विधाता ? शोषकों के शोषण से आकंठ त्रस्त पर भ्रम में मस्त कि वह " अन्नदाता " है । अन्नव्यवसाई या अन्न विक्रेता नाम हमने इसलिये नहीं दिये कि वह हानि लाभ की सोचे ही नहीं बस बना रहे अन्नदाता । लाभ हानि का गणित किसान को समझ में नहीं आना चाहिये ।जैसे ही समझ में आयेगा या तो वह खेती छोड़ देगा या खेती में ही मर खप जायेगा ।
अन्न व्यवसायी , अन्न विक्रेता , अन्न उत्पादक जैसे नामकरण शहरी धूर्तों , नेताओं और पाखण्डी लेखकों ,कवियों ने उसे दिये ही नहीं ।उसे तो अन्नदानी की श्रेणी में रख कर इन सबने सदियों से ठगा ही । तभी धूर्तो की प्रशंसा से ख़ुश होकर वह अधिक लागत लगा , अपना ख़ून पसीना लगा अपना अन्न , दाता के रूप में देता रहा । दान भाव से देता रहा अपना अन्न लहू से पैदा हुआ । वाह रे अन्नदानी !! किये रहो खेती , भूखों मरते रहो ,ग़रीबी में ही जियो ,मरो । जब सब्र टूट जाय कर लो आत्म हत्या किसी को क्या लेना देना , शहरी धूर्त यही कहेंगे कि पारिवारिक कलह से मरा ,बीमारी से मरा । सैनिक के मरने पर तो देश गमगीन भी होता है , सम्मान में क़सीदे भी पढ़ता है पर तेरे मरने पर जय किसान भी कोई नहीं कहता । कुछ समझे महामहिम अन्नदाता जी ??
कोई भी व्यवसायी घाटे में व्यवसाय अधिक समय तक नहीं कर सकता , किसान कर सकता है मरते दम तक । शहरी को खेती करते देखा है ? नहीं न ? है कोई माँ का लाल जो किसान की तरह काम करे ~ लागत अधिक लगाये , लगातार घाटा उठाये पर करे खेती ही । जीना यहाँ , मरना यहाँ की नियति में ।
सरकारें और शहरी धूर्त ,नेता ,व्यवसायी ,सब के सब लगे रहते हैं कि १-अनाज के दाम न बढ़ें और २- किसान खेती न छोड़े ,गाँव न छोड़े । नहीं तो भारी अनर्थ हो जायेगा । कहाँ मिल पायेंगे देश को ये 90 करोड़ बंधुआ किसान । चिन्ता उसके मरने से अधिक हमारे मरने की है , हम तो बंधुआ मज़दूर और बंधुआ किसान के पैरोकार जो ठहरे ।पढ़े लिखों के तर्क सुनिये किसान अनाज नहीं पैदा करेगा तो हम खायेंगे क्या ? देश क्या खायेगा ? जैसे पेट काट कर खिलाने का ठेका किसानों ने ले लिया है । स्वयं भूखों मर कर हम परजीवियों को ज़िन्दा रखने का पुण्य काम उसी के लिये है । हम तुम्हारी फ़सलो के दाम नहीं बढ़ायेंगे तुम मर जाओ ठीक पर देश नहीं मरना चाहिये । २०% को ज़िन्दा रखने के लिये ८० % की क़ुर्बानी ।
( क्रमश: )
राजकुमार सचान होरी
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किसान -अन्नदाता-१

किसान -अन्नदाता
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
किसान की होती है भूमि , जिस पर वह खेती करता है और ठीक वैसे ही भूमि का होत है किसान जो भूमि के लिये होता है ,भूमि के द्वारा होता है । उसका सम्पूर्ण अस्तित्व भूमि के लिये होता है । भूमि और किसान अन्योन्याश्रित हैं दोनो एक दूसरे पर निर्भर , एक दूसरे से ज़िन्दा ।किसान से भूमि छीन लो किसान मर जायेगा , भूमि से किसान छीन लो भूमि मर जायेगी -- एकदम बंजर ।किसान और भूमि का यह सदियों पुराना संबद्ध चलता आया है ।
इस मधुर संबंध में जब तब पलीता लगाया है किसी ने तो वे हैं भूमाफिया और भगवान । भूमाफ़ियाओं में सबसे ऊँचा बड़ा स्थान सरकारों का होता है , हाँ ग़ैरसरकारी भूमाफिया भी होते हैं जो संख्या में अधिक हैं और वे ही कभी सरकारों से मिल कर तो कभी अकेले दम पर ही भूमि को हथियाते हैं , कब्जियाते हैं । उधर भगवान के तो कहने ही क्या -कभी जल मग्न कर भूमि कब्जियाई तो कभी सुखा सुखा कर भूमि और किसान की दुर्गति करदी । कभी गोले की तरह ओले बरसा दिये तो कभी कोरें का बाण चला दिया । बस भगवान की मर्ज़ी ।कभी कभी तो एक साथ इतने सारे अस्त्र शस्त्र चला देता है भगवान कि किसान और भूमि दोनो को इतना घायल कर देता है कि किसान और भूमि दोनो गले लग लग कर मरते हैं ।
अन्नदाता -- एक अन्य नाम है ।किसान का कथित सम्मान बढ़ाने वाला नाम । जैसे प्राणदाता , दानदाता या जीवनदाता ।
क्रमश: ------


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