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'अन्नदाता' कह ,किसान का ,हम सम्मान बढ़ाते हैं ।
जय किसान का नारा भी तो ,शास्त्री जी गढ़ जाते हैं ।।
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चलो एक किसान होरी संग ,एक कचेहरी साथ चलें ।
वही पुरानी धोती कुर्ता ,चप्पल अब भी साथ मिलें ।।
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उसके खेतों मे दबंग ने ,क़ब्ज़ा किया हुआ था ।
एसडीएम ,डीएम से कहने ,होरी वहाँ गया था।।
डोल रहा था इधर उधर , बाबू अर्दलियों तक ।
कोर्ट कचेहरी सड़कों तक,बंगलों से गलियों तक ।।
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छोटे से बडके नेता तक ,चप्पल घिस डाली थी ।
दान दक्षिणा देते देते ,जेब हुई ख़ाली थी ।।
दौड़ लगाता वह किसान ,अंदर से पूर्ण हिला था ।
पर उसकी ख़ुद की ज़मीन का,क़ब्ज़ा नहीं मिला था ।।
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होरी का परिवार दुखी ,पीड़ित जर्जर ,तो था ही था ।
रोटी सँग बोटी नुचने का ,ग़म ही ग़म तो था ही था ।।
गया जहाँ था मिला वहीं,अपमान किसान सरीखा ।
उसको तो हर सख्स, ग़ैर सा ,मुँह फैलाये दीखा ।।
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जय किसान कहने वाले सब ,उसकी हँसी उड़ाते ।
नहीं मान सम्मान ,अँगूठा मिल सब उसे दिखाते ।।
क़र्ज़ भुखमरी से पहले ही ,वह अधमरा हुआ था ।
लेकिन ज़्यादा अपमानों से ,अंतस् पूर्ण मरा था ।।
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एक दिवस वह गया खेत में , लौटा नहीं कभी भी ।
होरी की यह कथा गाँव में ,कहते सभी अभी भी ।।
होरी किसान की अंत कथा ,दूजा होरी बतलाये ।
फिर से आँधी तूफ़ानों सँग , काले बादल छाये ।।
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राज कुमार सचान होरी
१७६ अभयखण्ड -१ इंदिरापुरम , गाजियाबाद
9958788699